बाल साहित्य जगत के कुशल चितेरे श्री शंभूलाल शर्मा 'वसन्त' जी - स्मृति शेष
बाल साहित्य जगत के कुशल चितेरे श्री शंभूलाल शर्मा 'वसन्त' जी - स्मृति शेष
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बाल साहित्य जगत के कुशल चितेरे, राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिलब्ध साहित्यकार श्री शंभूलाल शर्मा ‘वसंत' किसी परिचय के मोहताज नहीं थे | बेहद सौम्य और शालीन व्यक्तित्व के धनी शर्मा जी का बाल साहित्य लेखन अलग तरीके का था| वे बड़ी सी बड़ी बात को सरल , सहज शब्दों में आसानी से कह देते थे| वे जिस शैली व शिल्प का प्रयोग अपने लेखन में करते थे , वह औरों से सर्वथा भिन्न है | मेरा मानना है कि बाल साहित्य में शर्मा जी के अनुदान को पाठक निश्चय ही उनकी कविताओं को पढ़कर स्वतः अनुभव करने लगते है| यों तो इन्होंने अधिकतर बालसाहित्य हिन्दी की खड़ी बोली में ही लिखा है | किन्तु कुछ पुस्तक ऐसे भी है जो छत्तीसगढ़ी में लिखित है |
वैसे तो इनका सम्पूर्ण जीवन ग्रामीण पृष्ठभूमि के उन सुरम्य वादियों में व्यतीत हुआ | जहाँ का वातावरण शांत, घने वृक्ष, हरे - भरे धानों के लहराते बालियों से परिपूर्ण खेतों से घिरा है तो प्रातः मुर्गे का बांग देना, घर के आँगन में कबूतरों का आना, पक्षियों का चहचहाना, भौरों का गुनगुनाना, चौपाल में बैठ कर बातें करना आदि कहीं न कहीं प्राकृतिक दैवीय वरदान के छाप का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है | इसीलिए शंभू शर्मा जी का उपनाम ‘वसंत’ उन पर सटीक बैठता है | नैसर्गिक व ग्राम्य परिवेश में स्थायी निवास , प्रकृति की निराली छटा , कल्पना की स्वच्छन्द उड़ान ने उनके साहित्य को उन वादियों में पहाड़ों से अधिक ऊँचाई प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है |
रायगढ़ शहर के जाने माने साहित्यकार डॉ. बलदेव साव इनके बारे में लिखते हैं –“उनकी कविताएँ बच्चों से सीधे संवाद रचती हैं | थोड़े ही समय में शंभूलाल शर्मा ‘वसंत’ ने राष्ट्रीय स्तर की ख्याति अर्जित की है , इसके पीछे कारण है उनका अपना ग्राम्य परिवेश – प्रकृति की निराली छटा कल्पना की स्वच्छन्द उड़ान | मात्रिक छंदों का वैविध्य एवं तारल्य संश्लिष्ट शब्दावली की जगह चित्र भाषा का वितान, जटिल विचारों की जगह सरल, तरल सौन्दर्यानुभूति कथ्य में नयापन सधा हुआ शिल्प, यही वजह है शंभू बच्चों की ऐसी निराली दुनिया रचने में कामयाब है |”
वे आज भी अपना जीवन ग्राम्य परिवेश में सादगीपूर्ण व्यतीत कर रहे हैं | उनको शहरी हवा तनिक न भाई,वे दिखावें की जिन्दगी जीने में कभी विश्वास नही किये | वे धरातल पर रहते मिट्टी की सौंधी खुशबू को सीने से लगाकर मेहनत की कमाई में विश्वास करते हैं | भले ही ग्रामीण अंचल में रहते हों पर उनकी सोच वैश्विक स्तर की है, अनुकरणीय है | पेशे से शिक्षक होने के कारण भी बच्चों के प्रति जो स्नेह व उनकी एकबारगी दिखलाई देती है तथा उन तुतलाती, दुधमुंहे बच्चों की बोली में भाषायी बोध भी परिलक्षित होती है | उनके भाषायी मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझकर कविताओं के रूप में शब्दों में उकेरना अलग ही कला है |
एक उदाहरण देखिये - हाथी बल्ला ले मैदान में उतरा है | जिसका बल्लेबाजी सब को चकित कर देने वाली है।इस दृश्य का सजीव चित्रण कितना मनोहारी लगता है -
ले बल्ला कैप्टन हाथी
उतरा जब मैदान में।
जोर- शोर से बजी तालियाँ
तब उसके सम्मान में।
बब्बर शेर की तेज गेंद पर
ऐसा किया प्रहार जी।
पलक झपकते गेंद जा गिरी
सात समुंदर पार जी।
वैसे बालगीत लिखना इतना सरल नहीं है , एक चुनौतीपूर्ण कार्य है | वह भी जब बड़े व्यक्ति बच्चों की बात करें | बच्चों की स्मृति पटल में शीघ्र छप जाये उसके लिए रचनाकार को अपने उन बचपन की यादों में जाना पड़ता है जहाँ से गुजरे बरसों बीत चुके होते है | यूँ कहें स्वयं बच्चे बन अनुभव करना पड़ता है | कविता में रची काव्यवस्तु हमारे अंतर्निहित परिवेश पर अधिकतर केन्द्रित रहती है जिसे अपने भाषायी चमत्कारिक गुणों से सजा कला का प्रदर्शन मान ले अथवा विशेषता |
‘वसंत’ जी उन्मुक्त कंठ से सस्वर पाठ करते थे तो सम्प्रेषणीयता और स्पष्ट हो जाती थी | इससे यह बोध होता है कि जो पढ़ने से समझ में न आती हो उसे सस्वर गेय से प्रस्तुत करें तो मुद्रित शब्दों के भाव स्पष्ट हो जाते है, और स्वतः आकर्षित कर बच्चों को आनंद आने लगता है | एक कविता में दृश्य देखने को मिलता है कि बंदर मामा की खाँसी का उपमा देते शीघ्र उपचार कराने की बात करते है जिसका सुंदर चित्रण के साथ वे कैसा भाव निरुपित करते है | इसका सुंदर उदाहरण देखिये -
बंदर मामा, बंदर मामा
हो कैसे वनवासी जी,
खों,खों,खों,खों हरदम करते
पाल रखे हो खाँसी जी।
खाँसी का उपचार करा दें
देर हुई तो खैर नहीं,
रिश्ते में मामा लगते हो
हम तो कोई गैर नहीं।
बाल साहित्य जगत की गहराइयों में झाँककर देखें तो बहुतेरे लोगों के दिमाग में ‘पंचतन्त्र’ या ‘चंदामामा’का नाम कौंधने लगता है | बाल साहित्य मनोरंजन के साथ- साथ बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए भी आवश्यक है | आज का डिजिटल युग में पुरानी नीति कथाओं की तो नितांत आवश्यकता है | क्योकि अक्सर बच्चें कहानियाँ सुनने तथा पढ़ने के वजाय मोबाईल,टीवी,कम्प्यूटर में ज्यादा समय व्यतीत करते हैं |
‘वसंत’ जी ने एक पायदान में कदम रख कर जीवन भर बाल साहित्य लेखन में कार्य किया | उसी के फलस्वरूप उनकी बाल कविताओं में प्रवाह और ताजगी नजर आती है | सच्चे अर्थों में यदि परखें तो उनके द्वारा बीच समन्दर से मोतियों व सीपों को चुनकर बाल शब्दों में ढाल कर सँजोना निश्चय ही श्लाघनीय कार्य होगा | कवि चंदा मामा तक को निमन्त्रण दे दिया है | इसे भाषा कौशल का चातुर्य कहें अथवा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम |
चंदा मामा आना तुम
करना नहीं बहाना तुम।
शीतल किरणें बिखरा कर
अपना रंग जमाना तुम।
कैसे रूप बदलते हो
हमें तनिक बतलाना तुम।
अपने अमृत के घट से
प्रेम-सुधा बरसाना तुम।
चरखा काते जो बुढ़िया
उसका हाल सुनाना तुम।
भू-तल पर हम भी चमकें
ऐसा मंत्र सिखाना तुम।
‘वसंत’ की भाषायी मिठास जीवन –दृष्टि और यथार्थ –चेतना को अभिव्यक्त कर रेखांकित करती है | इसीलिए कहा भी जाता है कवि जैसा देखता है वैसा लिखता है | तद्नुरूप समाज में घटित होने वाली प्रत्येक घटना उसके विचारों को,संवेदनाओं को,जीवन-मूल्यों को प्रभावित करती है|
जिस तरह हिंदी बालगीतों में इनकी पकड़ है वैसे ही ठेठ छत्तीसगढ़ी के प्रयोग करने में निपुण | यही कारण है कि कविता रोचक बनाने में वे कोई कसर नही छोडते | आमतौर पर छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग गिने-चुने व्यक्ति अथवा ग्रामीण अंचल वाले करते है | शहरी क्षेत्रों में हिंदी का ज्यादातर प्रचलन है | इससे छत्तीसगढ़ी भाषा के अनेक शब्दों को समझना आज के बच्चों के लिए मुश्किल हो जाता है | जबकि यह हमारी आंचलिक भाषा है | हमें रोजमर्रा की भाषा के अनेक स्तर देखने को मिलता है इसी वजह से ग्रामीण स्तर के लोगों में आँचलिक शब्दावलियों का पुट रहता है |
कवि के कई रचनाओ में संवादात्मक जो स्वरूप है वे कल्पनाओं से परे है | कवि ने बिम्बधर्मिता का भरपूर पालन किया है | विषय वस्तु के आधार विभिन्न बिम्ब उनकी रचना में मिलेंगे | कुछ प्राकृतिक बिम्ब का जीवंत उदाहरण देखें कितने सजीव रूप में कहने का प्रयास किया है कि मैना पक्षी के वैवाहिक कार्यक्रम में अनगिनत पाहून आये हुए है जहाँ पर भांति –भांति के पकवान,व्यंजन बना हुआ है जिसे पँडकी,कबूतर सभी उपस्थित मेहमानों को परोस रहें है | कोयल मधुर कंठ से वैवाहिक गीत गा कर सुना रही है |तोता पोथी पढ़ रहा और लिटिया-लिटाई पक्षी देखकर अति उत्साहित हो रहें है | तथा आमों का झुंड,बगान स्वागत कर रहा है-
मैना के गउना,अब्बड़ हे पहुना।
परोसे कलेवा,पँडकी -परेवा।
कोइली के गाना,पारत हे हाना।
बाँचत हे पोथी,सुआ येती-ओती।
कुलकय रुक राई,लिटिया -लिटाई।
सब ल अमरईय्या,परघावय भइया।
इसके आलावा प्रतीक,मिथक और अलंकार भी प्रयुक्त हुए है | वही छंद निर्वहन में कोई कसर नही छोड़े है | वे भलीभांति जानते हैं छन्दों में बंधकर ही बाल कविता को आकार दी जाये यह जरूरी नहीं | वे भावों को कैसे पिरोया जाये, उसे बारीकी से विश्लेषण कर कुछ न कुछ विशेष बात कहने में समर्थता रखते है | श्रेष्ठ कवि वही है जो अपने व्यक्तिगत जीवन में अधिक संवेदनशील हो और कवि होने के दिखावें से सदा दूर रहें | स्वतः स्फूर्ततता और अनौपचारिकता का आधार स्त्रोत यही सहजता और संवेदनशीलता है | कविता का कलेवर,शैली व संप्रेषणीयता,सरलता के साथ –साथ सार्थक संक्षिप्तता किस तरह हो एक मंझे कवि की विशेषता होती है |
हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार व आलोचक विजयेन्द्र जी लिखते है – “कृत्रिम विचार परिदृश्य से मुक्त मनुष्य के स्वतः स्फूर्त पके हुए अनुभव को जो कविता अभिव्यक्त करेगी वही सम्प्रेषणीय होगी | केवल विचार कविता नहीं हो सकती | जब तक उसमें पकी अनुभूति न हो तब तक वह कविता व्यर्थ है | विचार और भाव अविभाज्य यानि एक दूसरे में बिलकुल गुँथे हुए होने चाहिए | स्वतः स्फूर्ततता को छोड़कर अन्य कृत्रिम विषय होते हैं |’’
‘वसंत’ जी के बारे में जय प्रकाश मानस पुस्तक ‘बगर गया वसंत’ में लिखते है, “जब बारीकी से इनके बारे में जानने लगता हूँ तो घोर आश्चर्य से घिरने लगता हूँ कि जिस गाँव में डाक खाने का ढोल तक न हो,फोन के जहाँ खम्भे भी न बिछे हों,बिजली कभी- कभार के लिए आती हो, तीन ओर से पहाड़,एक ओर बिना तारकोल वाले सड़क और सिर्फ खेत ही खेत हों,समाचार पत्र का नियमित और समय से पहुँचना जहाँ कपोल कल्पना हो ऐसे में जब कोई शिक्षक न केवल बाल कविता रचता हो बल्कि साहित्य के सभी मठ स्थानों से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं में धुआँधार छपता भी हो तो क्यों कर वह मुझ जैसे कविता प्रेमियों के लिए आश्चर्य का विषय न बने |”
हिन्दी बाल साहित्य में निरंतर कहानी कविता व कामिक्स लिखने एवम् विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं के साथ- साथ नंदन व मधुमुस्कान जैसे चर्चित पत्रिका में वसंत जी के साथ प्रकाशित होने वाले साहित्यकार श्याम नारायण श्रीवास्तव जी का कहना है कि बाल मनोविज्ञान पर शंभूलाल शर्मा जी की अच्छी पकड़ है | वे किसी भी दृश्य को बहुत सूक्ष्मता से परखते हैं | जिज्ञासा इतनी प्रबल है कि आज भी वे प्रत्येक घटना को बच्चों की भांति देखते हैं , प्रश्न करते हैं और फिर उन्हें कविता में ढाल देते हैं | श्री श्रीवास्तव जी का कहना है कि उन्होंने शंभू शर्मा जी के लगभग सभी काव्य संग्रह को पढ़ा है | जिसमें ‘मामा जी की अमराई’ , ‘जंगल में बजा नगाड़ा’ , ‘मेरा रोबोट’ , ‘है न मुझे कहानी याद’ , ‘इक्यावन नन्हें गीत’ , ‘मेरे प्रिय बाल गीत’ और छत्तीसगढ़ी में ‘बादर में मांदर’ , ‘नोनी बर फूल’ ,'मैना के गउना' और ‘आजा परेवा कुरु-कुरु’ आदि बहुत चर्चित बाल गीत संग्रह हैं |
‘वसंत’ जी के बारे में यदि मैं कहूँ तो उनसे परिचय अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन – रायगढ़ में हुआ था | उस कार्यक्रम का संयोजन मेरे द्वारा ही किया गया था | जिसमें हमारी समिति ने उनका सम्मान भी किया था | और घनिष्ट जुड़ाव साहित्यकार स्व.अंजनी कुमार’अंकुर’ जी के कारण हुआ | उनके सादगी पूर्ण जीवन से सभी चिर परिचित हैं | जब भी शर्मा जी से बात होती है , मेरे बोलने के पहले ही उनके मुख से ‘जय जोहार’ निकलकर मेरे पास आ जाता है | उनकी बात करने की शैली से हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाये | इसका कारण कहीं न कहीं उनका बालमन है जिन्होंने कइयों बाल कविता लिख जनमानस को प्रेरित किया है |
ऐसी उत्कृष्ट एवं भाववैविध्य का कवि के निवास स्थान करमागढ़ जहाँ उनका घर शिव कुटीर निश्चय ही पुण्य का धाम है,जहाँ की माटी में चन्दन की खुशबू महकती हैं |और उक्त जगह ऐसे पुण्य आत्मा बसती हो जिनके कारण आँगन में कई हस्तियां ,ज्ञानीजन आने को लालयित हो उठते है |
शंभूलाल शर्मा’वसंत’ के द्वारा लिखित हर शिशुगीत पाठ्य पुस्तक में शामिल योग्य है व बाल साहित्य पर गम्भीर रूचि रखने एवं शोधार्थियों के लिए कदाचित् उनकी किताब महत्वपूर्ण होगी | बाल – मन की कल्पना एवं विषय – वैविध्यता की दृष्टि से हर शिशुगीत संग्रह अत्यंत महत्वपूर्ण है | भाषा सहज,सरल एवं बोधगम्य है | भावचित्र के कलेवर प्रत्येक संग्रह की उपयोगिता को और भी बढ़ा दिया है | ऐसा लगता है जैसे जीवंत और सजीव हो |
मुझ अकिंचन द्वारा उनके शिशुगीतों का संकलन कर जनमानस तक पहुँचाने का कार्य भी किया गया है | यह परम सौभाग्य है कि इस कार्य हेतु पूजनीय वसंत जी का आभारी हूँ जो मुझ जैसे साहित्यकार को शिशुगीत सहेजने का कार्य दिया | उनके आशीर्वाद व स्नेह का सदैव ऋणी रहूँगा | जैसे एक पिता अपने बच्चों के प्रति दूजा व्यवहार नहीं करता वैसे ही श्रेष्ठ बाल गीतकार बच्चों की मानसिक क्षमता, प्रभावित करने वाले कारक,चित्ताकर्षक भाव भंगिमा तथा मनमोहक वस्तुओं और उनसे सम्बंधित प्रतिमानों ,विश्वासों का मापन कर,परिवर्तित परिस्थितियों व संभावित स्थितियों का सम्यक ज्ञान रख सके ऐसे दर्शन दिखाने व उपयोगी रचनाओं को परोसने का कार्य करते हैं |
उनके सारे शिशुगीत हमारे वातावरण में घटित क्रियाकलाप,आहार-विहार,कल्पना के संसार में विचरण कर उनसे बातें करना,रूठना-मनाना,घर बुलाना आदि अनेक विषयों से सुसज्जित बाल मन के करीब पहुँचने में कारगर है | कविताओं की हर पंक्तियाँ किसी भी सतर्क पाठक के हृदय को छूते हुए बड़ी ही सहजता से स्मृति पटल पर स्थापित हो जाएगी | इसका मुझे पूर्णतः विश्वास है |
महाकाल अघोर पीठ रायगढ़ द्वारा ‘सृजन श्री सम्मान’ , हिन्दी बाल साहित्य की चर्चित पत्रिका बाल वाटिका मासिक भीलवाडा (राज ) द्वारा ‘बालवाटिका सृजन सम्मान’ , नई पीढ़ी की आवाज सम्मान’ रायगढ़ द्वारा 2013 में सम्मानित , राष्ट्रीय कवि संगम छ.ग. प्रान्त इकाई द्वारा 2016 में ‘ राष्ट्र कवि दिनकर सम्मान’ जैसे बहुत सम्मानों से सम्मानित आदरणीय ‘वसंत’ जी बाल साहित्य जगत के सच्चे साधक थे।वे कभी भी सम्मान लेने के पक्षधर नही रहें।वे हमेशा कहते रहते थे कि प्रत्येक साहित्यकार का असली सम्मान उसका सृजन है।सृजन सार्थक होनी चाहिए।
आदरणीय श्री वसन्त जी का असामयिक जाना बेहद दुःखद है।उनके जाने से एक युग का अंत हो गया।निशदिन फोन कर हाल चाल जानना।और सिंघनपुरी जी 'जय जोहार' के जैसे शब्द से बात करना।सुन मन प्रसन्नचित हो जाता था।उनकी बात करने की शैली छोटे-बड़े सबको प्रभावित कर जाता था। जब अस्पताल में भर्ती हुए तब बात हुई -'सिंघनपुरी जी अस्पताल आय हंव।थोरकन तबियत ठीक नई लागत हे।' फिर मैं उन्हें देखने अस्पताल भी गया ।पर उनसे बात नही हो पाई।क्योंकि तब वे आई सी यू में थे।फिर एक दिन प्रातः 8 बजे वीडियो कॉलिंग कर बात हुई बोले की अब सुधार हो रही है।
लेकिन अचानक फिर से तबियत बिगड़ने लगी।और आज हम सबको अकेला छोड़ सदा के लिए चले गए। इतने सरल,सहज सहृदय व्यक्ति का जाना अपूर्णीय क्षति है।
आदरणीय वसन्त गुरुजी के श्री चरणों में अंतिम प्रणाम।विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित।
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आनंद सिंघनपुरी
रायगढ़।
9993888747
