सुन रणदीप हुड्डा जहां तेरे बीच से निकली ज्यादातर सपना चौधरी जैसी बनने की कोशिश करती हैं वही एक दूसरा समाज भी है जो तुम जैसे मनुवादी गुलामों से बेहतर सोचता है, जिसका आदर्श फूले जी फूलन जी

 


‘महिला को अपनी जगह नहीं भूलनी चाहिए. अगर बहुजन हो तो बिल्कुल नहीं.’ ये भारत की राजनीति का अनलिखा संविधान है. पर इस संविधान में संशोधन करने वाला एक नाम है जो हमेशा समाज के निशाने पर रहा है – मायावती जी को कुछ समय पहले भाजपा के एक लोकल नेता दयाशंकर सिंह ने कहा था कि मायावती वेश्या से भी बदतर हैं.

पर माया को समाज का कोई खौफ नहीं. वो किसी भी नॉर्म को फॉलो नहीं करती हैं. वो समाज के हर उस नियम को तोड़ती हैं, जिसे तोड़ने की ख्वाहिश आज के दौर की हर फेमिनिस्ट रखती है. वो परंपरागत सजने-संवरने को कब का धक्का मार चुकी हैं. मधुर बोलना और नजरें झुका के चलना. मजाक मत करिए. शील वाली बीमारी इनके पास भी नहीं फटकती. लज्जा स्त्रियों का आभूषण है. निर्लज्जता मर्दों का हथियार. अच्छा? मायावती जी सूट पहनती हैं और जूतियां भी. साथियों को एक पैर पर खड़ा रखती हैं. अच्छे अच्छे लोगइनके साथ स्टेज शेयर करते हैं तो चप्पल उतार के. मायावती जी ने समाज के नियमों के विपरीत शादी नहीं की. बच्चे नहीं पैदा किए. परिवार नहीं बसाया. पर यूपी में परिवार विहीन होना तो शास्त्रों के हिसाब से पाप की कैटेगरी में आता है. मायावती जी ने ये ‘विष’ पी लिया. 70-80 के दशक में जब संपूर्ण क्रांति करने के बाद देश फिर इंदिरा की तरफ मुड़ चुका था, उस वक्त मायावतीजी ने कांशीराम जी के घर में रहने का फैसला किया. उन पर तमाम लांछन लगे. पर मायावती जी ने कभी परवाह नहीं की. ये एक लड़की की ताकत की एक झलक थी.

मायावती जी वो औरत हैं जिन्होंने कभी किसी को ये कहने का मौका ही नहीं दिया कि अरे यार, ये लड़की तो मर्दों की तरह काम करती है. क्योंकि माया वती जी ने अपनी ताकत दिखाई है. एक औरत की तरह. वो डिफाइन करती हैं कि एक औरत कैसे काम करती है.

 . हम बात कर रहे हैं उस मायावती जी की जो भारत के बहुजन समाज और औरतों, जो कि वाकई में बहुजन हैं, की प्रतिनिधि हैं. भारत के हजार साल की संस्कृति की दुहाई देने वालों के लिए मायावती जी देवी होनी चाहिए. क्योंकि जातिगत समीकरण को तोड़ एक पटल पर लाने का ये करिश्मा पहले कभी नहीं हुआ था. 2007 का चुनाव अपने आप में इतिहास था.

बसपा मैनिफेस्टो जारी नहीं करती. मायावती जीखुद एक घोषणापत्र हैं. खुद एजेंडा हैं. भारत के इतिहास की सबसे बड़ी जादूगरनी. आप फील्ड में लोगों से पूछिए. धुर विरोधी भी मायावती जी का नाम आते ही कहता है लॉ एंड ऑर्डर में बहिनजी का जवाब नहीं. पर लगे हाथ ये आरोप लगते हैं कि मायावती जी ने पत्थर की सरकार चलाई थी. पर क्या ये अद्भुत नहीं लगता कि एक औरत भारत के यूपी में अपनी प्रतिमा का अनावरण करती है. हजारों सालों की भावनाएं, संस्कृति, दोगलापन और हर परंपरा से लड़कर ये चीज हुई थी. खुद मायावती ने कभी नहीं सोचा होगा कि ये घटना किस चीज का प्रतिनिधित्व करती है. यहां बात नेताओं की नहीं है. बात है एक औरत की. आज तक कितनी औरतों की प्रतिमाएं बनी हैं? अगर कस्तूरबा जी और सावित्री बाई फुले जी याद नहीं तो इंदिरा गांधीजी याद होंगी ही? अगर इमरजेंसी से परहेज है तो कम से कम इस बात को मान ही लेते कि भारत की एक लड़की ने सबको राजनीति सिखा दी थी. अगर मायावतीजी प्रतिमा का अनावरण नहीं करतीं, तो कौन करता?

ये प्रतीक है पुरषों की दासता से मुक्ति का 

मायावती की मूर्तियां उसी विरोध की परिचायक नहीं हैं. आप नहीं करेंगे, तो कुचला हुआ इंसान आगे बढ़ेगा और खुद कर लेगा. उसे आपकी अनुमति का इंतजार नहीं है. अगर ये बात जाननी है तो उन लोगों से पूछिए जिनको ें कांशीराम योजना में घर मिला है. जो रोड पर सोने के अलावा कुछ और नहीं कर सकते थे.

औरतें वोट-बैंक तो होती नहीं हैं. ये मायावती जी की कमजोरी है. दुखद ये है कि मायावती जी औरतों की नफरत का पात्र बनती हैं. दबी-डरी औरतों के लिए मायावती जी का स्वतंत्र होना खल जाता है. पर अगर सोचिए कि समाज का सबसे बहुजन वर्ग यानी कि औरतें मायावती जी को वोट कर दें तो क्या हो जाएगा भारत में. संपूर्ण क्रांति यहां होगी. मायावती जी पैट्रियार्की के ढांचे में फिट नहीं बैठतीं. और हम ये जानते हैं कि पितृसत्ता को चलाने में पुरुषो के साथ औरतें भी शामिल हैं. लोगों को आश्चर्य होता है कि औरतें मधुमिता शुक्ला, भंवरी देवी, कविता गर्ग से ऊपर कैसे जा सकती हैं. जो कि इस व्यवस्था का शिकार बन गईं. मरीं भी और तोहमत भी साथ ले गईं. पर माया वती जी ने लड़ना सीखा था. कम लोगों को पता होगा कि मायावतीजी ने कांशीराम के रहते फैसले अलग लेने शुरू कर दिए थे. ये उनको जयललिता जी और सोनिया गांधी जी से अलग बनाता है. जया जी कभी एमजीआर को लांघ नहीं पाईं. सोनिया गांधी जी को भी मनमोहन सिंह की जरूरत पड़ी. पर माया वती जी खुद पार्टी हैं.

1995 का गेस्ट हाउस कांड याद होगा लोगों को. भारत की राजनीति में शायद ऐसा कभी नहीं हुआ था. एक कमरे में एक लड़की बंद है. बाहर लोग चिल्ला रहे हैं. गालियां दे रहे हैं. रेप करने और मर्डर करने की बातें कर रहे हैं. आखिर इतने सारे मर्द उस लड़की से डर क्यों रहे थे. क्यों इतना डरे थे कि उसे मारना ही चाहते थे, उसके सामने बात नहीं कर सकते थे. वो लड़की मायावती जी ही थीं. इस घटना के 24 घंटे बाद मायावती जी सत्ता में आईं. और ये वही दिन था जब प्रधानमंत्री नरसिंहा राव जी ने इस मुख्यमंत्री को भारत के जनतंत्र का जादू कहा था. ये वही दौर था जब मायावती जी को अटल बिहारी वाजपेयी जी सरीखे नेताओं ने राजनीति की ताकत माना था.

मायावती जी ने जिंदगी को गर्दन से पकड़ा है. और यही चीज उनको सब की आंखों में खटकाती है. मेनस्ट्रीम मीडिया भी इनको इग्नोर कर के चलता है. कहते हैं कि करप्शन से पैसा लाती हैं. इसको जस्टिफाई नहीं किया जा सकता. पर कौन सा कॉर्पोरेट एक दलित नेता को फंड करेगा. कौन करता है. अगर मूर्तियों की बात करें तो सरदार पटेल की मूर्ति अकेले पार्क बनाने जितनी महंगी है. दूसरी बात कि अगर आप लखनऊ के अंबेडकर पार्क जाएं और अपने पूर्वाग्रह छोड़ दें तो देखने में बहुत खूबसूरत है. जितना पैसा पार्क की लागत में नहीं लगा होगा, उससे ज्यादा तो पार्क ने UP सरकार को कमाकर दे दिया। है। बहन मायावती जी जितना संघर्ष भारत की किसी भी महिला नेत्री ने किया हो तो बताना जरूर। एक तो महिला और ऊपर से समाज के कथित सबसे निचले पायदान से, उसमें भी मीडिया द्वारा पूर्णतः इग्नोर व तमाम अन्य लोगों के पूर्वाग्रहों से पीड़ित... आपकी राजनीतिक सोच अलग हो सकती है या आप असहमत हो सकते हैं लेकिन आप एक बार निष्पक्ष होकर खुद सोचिए #arrestrandiphudda

✍️-हमारे क्रांतिकारी बहना दीपमालिका भारती जी के कलम से सेल्यूट यू बहना जय भीम जय नारीशक्ति

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