जंगल उजरत हें, पानी सुखात हें
संगी हो दिनों दिन जंगल उजरत जात हें।रुख राई काट के बन ल घर कुरिया बनात हन। परकिरती के अतक नुकसान करत हन की पानी बूंदी, पानी के सोरोत हं कम होवत जात हे।प्रश्न ये उठथे कि का मनखे जतक रुख काटत हे ओतेक फिर जगात हे। कोनो नई जगात हावय। अंधाधुंध रुक के कटाई बस करत हांवय। दिनों दिन गरमी बाढ़त हें, पानी नई गिरत हांवय।अउ काबर गिरही सब्बो रुक राई ल चुन्द के घर के कारज मं लगात हंन।घर बनात हंन।अब बतावा परकिरती के नुकसान करईया हमीमन हंन।संगी हो परयावरन ल हमन ल हरियर बनाना हें। तो भुईया के मरम ल जानव अउ जतन करव।तभे जंगल झारी हरियर दिखी।गरमी बखत पानी के सोरोत अतेक कम हो जात हें की पिये बर करलई होथे।रटरटहा घाम के बत्तर मं देहे के पानी ओगरते फेर भुईया के पानी के सोरोत कम हो जाथे।पानी के जियादा फोकट उपयोग झन करा।अबिरथा में बोहात पानी के सदुपयोग करे करा। जेकर से पानी के दुकाल होय ल बचे जा सकय।अक्सर देखें हन शहर मं नल के पानी बोहात परे हे।अउ देहात मं तो एक बालटी में निपट जाही कच्छु काम वोला दस बाल्टी के उपयोग करथे।काबर ओमन ल कछुक चिंता नई ये।तंव सोचिन इसने दुरुपयोग करत रहीन तो पानी के सोरोत हं तो कम होत रही। एला समझ करके जानव अउ गुनव । फेर जमाना बदलत जात हे किसम किसम के तकनीक आवत जात हें। जेकर से कई रकम के संसाधन बढ़त हे, खर्चा बढ़त हें। जंगल ल काट काट के घर कुरिया बनात हन कतको मनखे कथे हाथी मार देत हें, भालू हबक देत हें अब आप ही मन बताव जंगल, जी जन्तु के घर ओला काट के अपन बसत हे तो जानवर मन कहा सरग मं जाके तो नई बसय। अइसने गोठ के मंथन करव।जियादा से जियादा रुख राई जगाव जतके कटात हंव ओंकर ले दुगुना जंगाव।पानी ल कम बउरव।जतक जरूरत हें ओतके लगाव।
कवि आनन्द सिंघनपुरी
