विकास के मूलमंत्र

 

नरवा,गरुवा,घुरुवा और बारी,

विकास के मूलमंत्र हैं संगवारी।

लोग जुड़ रहें हैं धरातल से,

गढ़ रहें हैं आयाम रसातल से।

स्वप्न साकार हो रहे पारी- पारी,

नरवा,गरुवा,घुरुवा और बारी,

विकास के मूलमंत्र हैं संगवारी।


गाँव घर की सौंधी माटी महके,

जहाँ पंछी पाँत- पाँत है चहके।

तुलसी बिरवा बिराजे हैं गेह,

नित प्रति पहर बरसे हैं नेह।

मया प्रीत के  खिले फुलवारी

नरवा,गरुवा,घुरुवा और बारी,

विकास के मूलमंत्र हैं संगवारी।


सहेजें ,परिश्रम करें अथक।

पानी बिन जीवन हैं निरर्थक,

किसानों का अनुपम उपहार,

सुनियोजित रखरखाव निस्तार।

पुण्य अति सुखद फलकारी,

नरवा,गरुवा,घुरुवा और बारी,

विकास के मूलमंत्र हैं संगवारी।


बिन  चारा  विचरे धेनु मैदान,

खाते रूखी - सुखी घास व पान।

बन  रहे हैं सामुहिक  गौठान,

घूमते- फिरते पशुओं का मकान।

अब देख-रेख झंझट छूटे सारी,

नरवा,गरुवा,घुरुवा और बारी,

विकास के मूलमंत्र हैं संगवारी।


साफ सुथरा रखें घर द्वार,

दूर रहें हर बीमारी विकार।

करें उपयोग नित शौचालय,

कचरा ,खाद बना कर संचय।

पाल ,डाल फसल उपजे भारी।

नरवा,गरुवा,घुरुवा और बारी,

विकास के मूलमंत्र हैं संगवारी।



जगा ले बाड़ी कुंदरू करेला,

इससे किसी का नही झमेला।

खाएं पौष्टिक फलदाय फल,

स्पूर्ति, ताकत आए हर पल।

भांति -भांति के उपजे तरकारी,

नरवा,गरुवा,घुरुवा और बारी,

विकास के मूलमंत्र हैं संगवारी।


आनन्द सिंघनपुरी, रायगढ़(छ. ग.)

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