सारंगढ़ की पुकार



पान,पानी, पालगी की हैं अनुपम नगरी,

चहुँ ओर प्रवाहित महानदी की पयडगरी।

प्रतापी राजन नरेशचन्द्र कीर्ति गिरि विलास,

माँ समलेश्वरी,कौशलेश्वरी की पुण्य परास।

गढ़ो में शुमार कीर्ति पताका,ज्ञानी पले,

राजनीत के चक्रव्यूह में सदा गये छले।

सपन टूटन में तब्दील हुई फिर ठगे गये,

वर्षों की उम्मीद  जिला बनने धरे रह गये।


दे झूठ दिलासा कईयों आके चले गये,

हम अंधभक्त बनकर राह तकते रह गये।

अपनों ने अपनों को कैसा दिया छलावा,

देकर आश्वासन कैसे बांधे थे कलावा।

पक्ष विपक्ष दो पलड़े में सदा गए हम तोले,

देख सियासी सत्ताधारी पट्टी खोल बोलें।

सियासी पलड़े पलटे तुम्हें अब क्या हुये,

सपन टूटन में तब्दील हुई फिर ठगे गये,

वर्षों की उम्मीद  जिला बनने धरे रह गये।



स्वप्न के सागर में तुम भी गोते लगा गए,

जन जन की आशाओं को मात दे भुला गए।

विश्वासों से फ़तेहकर सियासत पे बिठाए,

कर मत  दोनों दलों पर भरोसा हम जताए।

मूलभूत सुविधाओं का राह अब भी तक रहा,

सारंगढ़ जिला की अब भी बांट जोह रहा।

दरख़्त,जमीं,जन-जन  की अलाप बिखर गये,

सपन टूटन में तब्दील हुई फिर ठगे गये,

वर्षों की उम्मीद  जिला बनने धरे रह गये।


आनन्द सिंघनपुरी, सारंगढ़

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