परीक्षा की घड़ी(जनक छंद)
जरा संभल कर चलिये, हर डगर बिछा शूल है,
मिलकर सुगम पथ गढ़िये।
धैर्य से विमुख मत हो, अविराम बढ़ते चल तू, अथक परिश्रम करते रहो।
डिगे न कदम अड़िग बढ़े, हर क्षण दृढ़ संकल्प से,
सदा नव सोपान चढ़े।
निज कर्म से बन सकता,उपल भी वारि जान लो,
है मंत्र यही सफलता ।
राह दुश्वार हो लगे,सरलता तलाश करना,
चाहे कई बरस लगे।
है प्रेरणा असफलता , जो इसे है समझ लिया,
उसके लिए क्या विफलता।
अनुभव कि कड़वाहट में, अगम उद्देश्य साध ले,
हारे न कभी जनम में।
आनन्द सिंघनपुरी
सारंगढ़
